आपकी सफलता आपका अैटीटियूट
आज समाज के लोगो के सामने सबसे बड़ा प्रश्न यह है कि सफलता कैसे प्राप्त की जाए। सफलता प्राप्त करने के लिए व्यक्ति में काॅन्फीडेंस, उदेश्य होना चाहिए,’’पर सफलता पाने का उदेश्य खुला नही है,वह इस बात पर निर्भर करता है,कि व्यक्ति के जीवन में पुरूषार्थ हैै,तो व्यक्ति को सफलता पाने के लिए उस पुरूषार्थ के योग्य होना ही सफलता का उदेश्य हैै, पुरूषार्थ पर विनोबा भावे जी ने कहा है कि:-
’धर्म,अर्थ,काम और मोक्ष -ये चार पुरूषार्थ बताये गये है।’ इनमंे से मोक्ष और काम दो परस्पर विरोधी सिरों पर स्थित हैं।
धर्म:-आत्म-संयम,संतोष,दया,उदारता,क्षमा,अहिंसा एवं कर्तव्य - पालन आदि गुणों को ग्रहण करने की प्रेरणा देता हैै। अर्थ:-धन-या-सम्पत्ति से नहीं है,बल्कि यह भौतिक आवश्यकताओं की पूर्ति से तथा उदेश्य के संकल्प से होता है।
काम:-प्रयत्न के साथ उदेश्य के लिए कार्य करना तथा प्राणिशास्त्रीय आवश्यकता की पूर्ति,संतानोत्पति द्वारा माता पिता के ऋण से मुक्त होने और समाज की निरन्तरता को बनाने की प्रेरणा देता है।
मोझ:-मोझ का मतलब मृृृृृृत्यु से है परन्तु इसका एक और मतलब है.वह यह है,कि उददेश्य की प्राप्ति के बाद के आनंद से है।
परन्तु जो पुरूषार्थ के योग्य नहीं होते है. तो उन्हे असफलता मिलती है.तब वह यह क्यों भूल जाते है. कि ’’असफलता का तो व्यक्ति जीवन से घनिष्ठ सम्बन्ध है, ’’परन्तु असफलता को हमें प्रतीयमान उपयोगिताके आधार पर रखने की कोशिश करनी चाहिए जो नहीं करते है.तो उन्हें असफलता मिलती है,इस पर महान दार्शनिक कार्लाइल का कहना है कि:-
’’बिना असफलता के सफलता नहीं मिलती है।असफलता तो परीक्षा लेती है कि उसकी बहन सफलता के योग्य तुम भी हो या नहीं।’’
नहीं, तो आप उदास,़निराश,परेशान,मायूस रहने लगते है फिर धीरे-धीरे अपने जीवन के सिद्वान्तों,कर्तव्यों और आर्दर्शो से टकराने की भावनाखो देते है, जिसके कारण आपमें अहंकार,क्रोध, द्वेष, ईष्र्या आदि बाधाआंे,कठिनाइयों,समस्याओं का जन्म होता है जिससे आपमें,ज्ञान,विवेक,शक्तिकी कमीं से स्थिरता खुद-ब-खुद कम होती है,लेकिन हाॅ बाधाओं, कठिनाइयों,समस्याओं से डरे नहीं बल्कि उनसे जूझने, लड़ने व प्रत्यक्ष रूप से सघंर्ष करने की कोशिश करनी चाहिए इस विषय पर गिलिन जी ने कहा है कि:-
’’ संघर्ष वह सामाजिक प्रक्रिया है जिसमें व्यक्ति या समूह अपने विरोधी को प्रत्यक्ष रूप से हिंसा या हिंसा की चुनौती देकर अपने उददेश्यों की पूर्ति करना चाहता है।’’
लेकिन जो संघर्ष,कोशिश व लड़ते है। तब उन्हे कन्फूजन की स्थिति महसूस होती है,किन्तु हाॅ,इससे पहले उनके पास यह स्थिति नही होती है,क्योंकि बेरोजगारी,नकारात्मक सोच आदि जैसी धारणाएं लिए बैठे होतेहै,जिसके कारण अपने को बेकार कुछ न करने योग्य, शून्य-सा मानते है और कहते है कि:-
’’वह हमारे भाग्य में कहाॅ, जो हमें मिलेगीं वो तो,पैसे वालो को या जिसका भाग्य तेज होगा ,उनको ही मिलेगी।’’
देखा जाये, तो सामान्य दृष्टि से ऐसी धारणाओ के लोग मानसिक रूप से बीमार होते है, जिसके कारण वे लोग शार्ट- कट और आसानी के आदि होते है,लेकिन तब उनको समझना व समझाना बड़ा मुश्किल होता है।तब शेंख सादी जी ने कहा है कि:-
’’आसान काम बुजदिल और मुश्किल काम शेरदिल करते है।’’
’’जज्बा जोश है आप में कुछ करने का,
तो उठो दोस्तो राहा बनाने के लिए ।
सर्घष,कोशिश करते रहना पथ में ,
मंजिल खुद चली आयेगी तुम्हारे लिए।।’’
हाॅ तो अब चलते है भाग्य और पैसे पर तो क्या आपने कभी सोचा है, कि पैसा और भाग्य से क्या हासिल कर सकते है कुछ भी नही,क्या मौत को पैसे के दम पर रोक सकते है नही , क्या मुर्दो को दफन न करके घर में छोड़ दे,भाग्य के लिए ,तो क्या वह जिन्दा हो जायेगें,नही वह घर में पड़े-पड़े सड़ जायेगें और बदबू देने लगेगें,फिर आप उनके पास रहना,बैठना भी पसन्द नही करेगें तथा अन्त में उनको दफन तथा अपने से दूर करना पडे़गा।तों आप सोचिए कि पैसे से मौत को नही रोक सकते,भाग्य से मुर्दो को जिंदा नही कर सकते,’’पैसा और भाग्य से जब दुनिया की इतनी बडीचीज़ हासिल नही कर सकते,तो ये आपके लिए क्या अहमियत रखते है।कुछ नही,अब बात आती है नाकारात्मक सोच,शंकाओ,विचारो की तो आप ने अक्सर कई लोगो को कहते हुए सुना होगा कि:-’
’’ यार यह काम संभव है या नही ................!’
यार डर लग रहा है.........................................।
लगता है यह काम मुझसे नही हो पायेगा.....। ’’
’’डर तो मन में स्वतः ही पनपता है जिसका अन्त करने के लिए साहसी और कर्मशील बनों।’’
अगर आपको किसी काम में डर लगता है तों वही काम करो डरने की कोई आवश्यकता नही। क्योकि जब आप वही काम एक दो दिन कर लेते है, तो तीसरे दिन डर खुद -ब -खुद भाग जाता है, तो अब बात करते है न या नही की।अगर आप ने न या नही सोच लिया,तो समझ लिजिए कि हजारों नकारात्मक विचार,शंकाए आपको घेर लेगें,फिर आपका मन ,मस्तिष्क भी उन्ही विचारो , शंखाओ की तरह कार्य करने लगेगा। और फिर आप सोचते ही रह जायेगेे,हाथ पे हाथ रखे रह जायेगें तब आप कुछ नही कर सकते , जिससे निश्चित ही असफलता मिलती है तब आप याद करो
’’उस महाभारत के अर्जुन को जिसने अपनी बन्द आॅखो से चिडि़या की आॅख फोड़ दी, वो मन में सोच लेते ,कि बन्द अंाॅखो से मै चिडि़या की आॅख कैसे फोड़ पाउगां तो शायद वह नही फोड़ पाते।’’
इसलिए न या नही को भूल जाये,क्योकि यह आपके कैरियर , उदेश्य का सवाल होता है।इसलिए एक बात का मुख्य रूप से ध्यान में रखे कि:-
’’उस महाभारत के अर्जुन को जिसने अपनी बन्द आॅखो से चिडि़या की आॅख फोड़ दी, वो मन में सोच लेते ,कि बन्द अंाॅखो से मै चिडि़या की आॅख कैसे फोड़ पाउगां तो शायद वह नही फोड़ पाते।’’
इसलिए न या नही को भूल जाये,क्योकि यह आपके कैरियर , उदेश्य का सवाल होता है।इसलिए एक बात का मुख्य रूप से ध्यान में रखे कि:-
’’ जो लोग;कर्मशीलद्ध लगातार लगे हुए है अपने पथ पर,तोे कुछ समय बाद नाकारात्मक सकारात्मक में परिवर्तित होने लगती है प्रेरणा शाक्ति और अधिक मजबूत होती जाती है।’’
इस विषय पर महान विचारक/लेखक शेक्सपीयर जी ने अपने शब्दो में कहा है कि:-
’’हमारी शंकाए विश्वासघातिनी है,हमे उन अच्छाईयों से वछिंत रखती है जिने हम प्रयत्न करके प्राप्त कर सकते है ।’’
तो अब अवसर की बात करते है , जो लोग अवसर का इन्तजार करती है तो अक्सर आपने उन्हे कहते हुये सुना होगा कि:-
’’अगर अवसर मिला, तो सबको दिखा दूगा।’’
अगर आपने एैसा सोचा है,तो वह बिल्कुल गलत है क्योकि ’’मौके का इन्तजार वह लोग करते है, जो कायर बुद्विहीन होते है।”परन्तु समय और मौका सबके पास आता है । किसी के पास पहले तो किसी के पासबाद में,लेकिन जो अवसर को समझ,पहचान नहीं पाता है,’’तो वह जिन पैरो से आता है उन्ही पैरो से वापस चला जाता है,’’इसलिए ई0 एस0 चेपिन जी ने कहा है कि:-
’’सर्वोत्तम मनुष्य वे नही है जो अवसरो की राह देखते है ,अपितु वे है तो अवसरो को अपना दास बना लेते है ।’’
इसलिए अवसरो को वह भूल जाये अगर आप को कही पर भी कोई छोटा या बड़ा जैसा अवसर दिखाई देता है,तो उसको तुरन्त पकड लो क्योकि:-
’’जो सघर्षरत होते है, वे छोटे-बड़े अवसरों को पहचान लेते है और प्राप्त करते है । फिर एक दिन उनको अपने पथ में सफलता मिल जाती है ।”
’’अवसर के बाद युवाओं में एक और समस्या का जन्म होता है, वह है बेरोजगारी,बेरोजगारी क्या है?इसके लिए अज्ञात जी ने अपने शब्दों में अपना विचार दिया है कि:-
’’बेरोजगार व्यक्ति को कष्ट तो पहुचाता ही है,साथ ही उनका नैतिक पतन भी होता है ,जो साधारण रूप से समाज को ग्रस्त कर लेता है और पीढ़ी-दर-पीढ़ी बढ़ता ही जाता है।इसप्रकार के असन्तुष्ट नवयुवकों का अधिक संख्या में बेकार होना देश की राजनीतिक स्थिरता के लिए भी हानिकारक और भयंकर है।’’
तब बेरोजगारी से निराश,परेशान नही होना चाहिए क्योकि बेरोजगारी कोई बड़ी समस्या नही है इसलिए कि यह अपने हाथों द्वारा ही बनाई गयीहै,बेरोजगार व्यक्ति तब होता है जब उसके पास बुद्वि,विवेक न हो तथा भविष्य में कोई आशा न बची हो।तो सोचो आप पढ़े-लिखे हो बुद्विमान हो,विवेकशील हो और फिर हर व्यक्ति में कुछ-न-कुछ अलग फन,टैलेंट होता है,तो उठो अपने जीवन को पहचानों, जानों गहराई से देखों, सोचो और फिर अपने आप से प्रश्न करो, किः-
’’मै क्या करू ?’’
जब आप शांत मन से सोचते है। तो इसका एक ही उत्तर मिलता है कि जब-जब आपको असफलता मिली है तो कहीं न कहीं आपमें कमीहै इसलिए ’’जब तक आपको आपने क्षेत्र में सफलता न मिल जायें , तबतक आप हाथ-पे-हाथ रखकर न बैठे और पूरी शक्ति जोश, जज़्बे के साथ प्रयत्न,श्रम,संघर्ष करते रहिए ’’क्योकि:-
’’आधुनिक युग के दौर में सब कुछ संभव है असंभव कुछ भी नहीं क्योंकि आज हर क्षेत्र सामने है जिस क्षेत्र में आप योग्य है उसका चुनाव कर उसमें पूर्ण जोश,शक्ति,जज़्बे के साथ प्रयत्न करो फिर एक दिन सफलता आपके कदम चूमेगी।’’
और फिर सरकार भी समय-समय पर हर वर्ष कोई न कोई रोजगार योजनाए प्रदान करती है, तो सोचो बेरोजगारी कहाॅ है, कहीं नही,आपके मन-मस्तिष्क में,तो इन विचारो,शंकाओ धारणाओ को निकाल फेंक और बस श्रम,कोशिश,संघर्ष,प्रयत्न नाम के बीज बो लिजिए अपने मन मस्तिष्क में तब प्रसिद्व दार्शनिक शेखसादी का कहना है कि:-’
’’यो तो जिन्दगी जैसे - तैसे सभी की गुजर जाती है पर असली जीना उनका है जो एक उदेश्य के लिए जीते है । दरअसल कुछ चाहने और फिर उसे प्र्राप्त करने की कोशिश में आदमी जिन्दगी का असली मज़ा ले सकता है ।’’
आपके पास भाग्य,पैसा,अवसर आदि जैसी धारणायें है तो समझो यह ’’आपके मनोबल, दृणशक्ति , कान्ॅफीडेंस को कमजोर करती है,और फिर ’’जीवित मुद्र्रा बना देती है आपको ’’तो क्या कोई पास आयेगा,बोलेगा!
नही,वो सब आपसे दूर-दूर रहनें लगेगें घृणा करने लगेगें, तब वापरन जी कहतेे है किः-
जब आप शांत मन से सोचते है। तो इसका एक ही उत्तर मिलता है कि जब-जब आपको असफलता मिली है तो कहीं न कहीं आपमें कमीहै इसलिए ’’जब तक आपको आपने क्षेत्र में सफलता न मिल जायें , तबतक आप हाथ-पे-हाथ रखकर न बैठे और पूरी शक्ति जोश, जज़्बे के साथ प्रयत्न,श्रम,संघर्ष करते रहिए ’’क्योकि:-
’’आधुनिक युग के दौर में सब कुछ संभव है असंभव कुछ भी नहीं क्योंकि आज हर क्षेत्र सामने है जिस क्षेत्र में आप योग्य है उसका चुनाव कर उसमें पूर्ण जोश,शक्ति,जज़्बे के साथ प्रयत्न करो फिर एक दिन सफलता आपके कदम चूमेगी।’’
और फिर सरकार भी समय-समय पर हर वर्ष कोई न कोई रोजगार योजनाए प्रदान करती है, तो सोचो बेरोजगारी कहाॅ है, कहीं नही,आपके मन-मस्तिष्क में,तो इन विचारो,शंकाओ धारणाओ को निकाल फेंक और बस श्रम,कोशिश,संघर्ष,प्रयत्न नाम के बीज बो लिजिए अपने मन मस्तिष्क में तब प्रसिद्व दार्शनिक शेखसादी का कहना है कि:-’
’’यो तो जिन्दगी जैसे - तैसे सभी की गुजर जाती है पर असली जीना उनका है जो एक उदेश्य के लिए जीते है । दरअसल कुछ चाहने और फिर उसे प्र्राप्त करने की कोशिश में आदमी जिन्दगी का असली मज़ा ले सकता है ।’’
आपके पास भाग्य,पैसा,अवसर आदि जैसी धारणायें है तो समझो यह ’’आपके मनोबल, दृणशक्ति , कान्ॅफीडेंस को कमजोर करती है,और फिर ’’जीवित मुद्र्रा बना देती है आपको ’’तो क्या कोई पास आयेगा,बोलेगा!
नही,वो सब आपसे दूर-दूर रहनें लगेगें घृणा करने लगेगें, तब वापरन जी कहतेे है किः-
’’ज्ञानी को सबसे अधिक चक्कर में डालने वाली,
यदि कोई वस्तु है तो वो मूर्ख की हॅंसी।’’
तब आप घृणा हॅंसी से निराश ,परेशान ,बेचेन लगते है और फिर खुद से,अपने आप से घृणा करने लगते है यह देखकर महान विचार वापरन जी ने फिर कहा है कि:-
’’घृणा हदय का पागलपन है। ’’
फिर आप पागल से हो जाते हो और निराश होकर इधर - उधर भटकते हो,तब आप दूसरों का आसरा ताकते हो, उनसे मद्द लेने की सोचते हो, तब इसपर महान दार्शनिक अरिस्टाटिल का कहना है कि:-
’’क्या तुम लगड़े हो ,जो दूसरो का आसरा ताक रहे हो ?’’
नही,आप लगडे़ नही हो,न कमजोर हो,न बुद्विहीन हो,आप तो सिर्फ गलत धारणाओं,अफवाहो,विचारो के शिकार हो तभी आप अपने को बेकार,कमजोर,परेेशान निराशा घृणा केपात्र मानतें लेकिन कभी आप ने सोचा है कि इस स्थिति का जिम्मेदार कौन है?कोई और नही सिर्फ आप! इस पर महात्मा गाॅंघी जी ने कहाॅ है किः-
’’ मनुष्य वही बनता है,जैसा वह सोचता है कि वह है। यदि मुझे विश्वास हो कि मै यह नही कर सकता ़तो यह विचार ही हमे उस कार्य के लिए अक्षम बना देता है।यदि मुझे विश्वास हो कि मै इसेकर सकता हॅू। तो क्षमता न होने पर भी आपेक्षित शक्ति का स्वयंः विकास हो जाता है।’’
तो अब आप शान्त मन से एकंागा होकर सकारात्मकता से सोचे,अपने विचारो को बदले क्योकि यह एक सत्य है कि ’’परिवर्तन संसार का नियम है।’’ इस कथन को ध्यान मे रखते हुए फिर देखे कि:
’’हर रोज दिन रात क्यो होता है?
मुरर्गा सुबह शाम ्रबाग क्यो लगाता हे?
फूल क्यो खिलते है
दिन-रात ,क्यो होता है ?
चिडियाॅं क्यो चहचहाती है?
मंदिरो मे शांख ,घण्टे, घडियल क्यों बजते है?
मस्जिदों में अजान क्यों लगाई जाती है? ’’
यह सब आपको आने वाले कल,पल,क्षण के लिए आगाह करते है,और कहते है कि उठो,नींद से जागो,अब सोने का वक्त नही है,अब सघंर्ष का वक्त है, संघर्ष के साथ लग जाओ कार्य क्षेत्र में,समय बिल्कुल भी खराब मत करो क्योकि -
’’बीता हुआ लम्हा कभी वापस नही आता इसलिए आगे आने वाले लम्हें के बारे मे हर -क्षण सोचों और उसमें कोई ऐसा कार्य न करो जिससे तुम्हें समाज में अपमानित होना पडे़।’’
जो हुआ,खो दिया उसको भूल जाओ और अब आगे की सोचो तथा किसी भी भ्रम ,भय ,धारणाओं को मन से तुरन्त निकाल फेकों और फिर कभी मन में पैदा न होने दो क्योकिःः-
’’हर अंधेरे के पीछे ,एक उजाला होता है
हर संर्घष का मजा, निराला होता है ।
सफल होने के लिए ,यह बहुत जरूरी है ।
क्योकि सफलता का मुलमंत्र ही सद्यर्ष होता है।।’’
तो उठो,सघर्ष करो ओैर संघर्ष के मध्य एैसे व्यक्तियों से दूर रहो,जो खुद तो कमजोर होते है तथा आपको को भी कमजोर करते है,क्योकि उनमें कॅान्फीडेंस नही होता,जोश नही होता,जज्बा नही होता , इसलिए वे असफल रहते है। तो सोचो काॅन्फीडेंस होना बहुत जरूरी हैं क्योकि:-
’’काॅन्फीडेंस वह वस्तु है जो हर अंसभव कार्य को संभव कर देता है। ’’
तो आपने समाज में देखा हा्रेगा कि वैज्ञानिक,डाॅक्टर, इंजीनियर, व्यवसायी,डी.एम, नेता, अभिनेता सब यही पर बनते है, इतिहास भी इस बात का साक्षी है कि:-
’’कोई महान आदमी जन्म से ही महान नही होता।’’
वो महान बनने के लिए सपने देखते है, और सीखने की इच्छा को बढ़ते है।वो इतिहास से सबक लेते है,फिर मन में कल्पनाऐं सपने,खबाब बोते है और सोचते है कि:-
’’दुनिया का ऐसा कौन-सा काम है जो हम नही कर सकते है।’’
फिर वर्तमान,भविष्य में अच्छे,विचारों,फॅान्फीडेंस,सकल्प के साथ हर स्थिति को संभव करते है जो असंभव होती है और फिर अपना एक उदेश्य बनाते है इसपर महान र्दाशनिक के पियर्सन ने अपने विचारों में कहा है कि:-
’’सभी महान वेज्ञानिक अविष्कारों की खोज में संयत कल्पना का वास रहा है।’’
तब आप कहते है कि,कल्पनाओ के माध्यम से उदेश्य बनाना तो आसान है,परन्तु उस उदेश्य को प्राप्त करना उतना ही कठिन है जितना कि कोहरें में धूप का निकलना।’’तब अब्राहम लिकंन जी ने ऐंसे व्यक्तियों के लिए एक पत्र लिखा
था,जोकि:-
मैं जानता हॅंू , उसे यह समझना होगा कि सभी मनुष्य न्यापी नहीहोते ,सभी सच्चे नही होते परन्तु आप उसे यह समझाये कि दुष्टों के प्रतिरोध के लिए शूर-वीर भी होते है और यदि स्वार्थी राजनीतिज्ञ है तो समीर्पत नेता है। उसंे यह बोध करायें कि यदि शत्रु होते है तोमित्र भी होते है।कमाया गया एक डालर पाये गये पाॅंच डालरों कीतुलना में कही ंअधिक महत्वपूर्ण है।........उसे आप खेल भावना सेहारना सिखायें और विजयी होने का आनन्द लेना भी सिखये। उस ईष्र्या से दूर ले जायें।यदि हो सके तो उसे पुस्तको का चमत्कार
समझाये,विघालय मे उसे यह भी समझायें कि धोखा देने की तुलनामें असफल होना कही अधिक सम्मानजनक है......उसे अपने विचारोंपर विश्वास रखने की सीख दे चाहे प्रत्येक व्यक्ति उसके विचारों को गलत ही क्यों न कहें। उसे भद्रजनों के साथ भद्र और उद्दण्डव्यक्तियों के साथ कठोर बनना
सिखाये।’’ यदि हो सके तो उसे यहभी सिखाये कि विवाद के क्षणों में मुस्कराया कैसे जाता है।..............दसे यह समझायें कि आॅखों में आना लज्जा की बात नही है। उसे विश्वासहीन व्यक्यिों की उपेक्षा करना सिखाये और अत्यधिक मधुरता से सावधान रहना भी सिखाये ...............उसे यह शिक्षा दे कि वह
अपना मस्तिष्क तो सबसे ऊॅंचे दाम देने वाले के हवाले करें किन्तु अपनी आत्मा और विश्वासों के दाम न लगाये।उसे चीखने-चिल्लाने वाली उग्र भीड़ की तरफ कान बन्द करना सिखाये .........और यदि वह अपने पक्ष को सही मानता है तो उस पर दृढ़ रहकर संघर्ष करने की भी उसे शिक्षा दे ।
’’यह बहुत ही अपेक्षा है परन्तु सोचे कि आप क्या कर सकते है।’’अगर हाॅ तो उठो ,देखो उस सूरज को,जो कोशिश,प्रयत्न करने के बाद वह पृथ्वी पर से कई घण्टो बाद कोहरें को दूर करता है क्योकि वह जानता है कि:-
’’कोशिश,प्रयत्न करना हमारा काम है, न की स्वंय-से- स्वयं को फल देना ’’
तो सोचो यह वक्त सोने का है हाथ-पे-हाथ रखकर बैठने का है ,जैसे-तैसे पेट भरने का है बहानेवाजी करने का है ! नही बिल्कुल भी नही यह वक्त है इतिहास से सीख लेने का, कुछ अलग करने का क्योकि महान लोग कोई महान काम नही करते है वह सफलता के लिए सपने देखते है और उनको साकार करने के लिए कोशिश प्रयत्न करते है इस पर अज्ञात जी ने कहा है कि:-
’’वे अपनी असफलता में सफलता ढ़ूढ़ लेते है जिसके कारण वे बड़ेसे बड़े आविष्कार,कार्य करते है तथा कल्पना और सपने को साकार करतें है । ’’
और फिर वह काॅन्फीडेंस से साथ आशावादी होकर प्रसन्न रहकर गहराई के साथ कार्य तथा कार्य योजना बनाकर प्रयास प्रयत्न कोशिश करते है कि:- ’’
था,जोकि:-
मैं जानता हॅंू , उसे यह समझना होगा कि सभी मनुष्य न्यापी नहीहोते ,सभी सच्चे नही होते परन्तु आप उसे यह समझाये कि दुष्टों के प्रतिरोध के लिए शूर-वीर भी होते है और यदि स्वार्थी राजनीतिज्ञ है तो समीर्पत नेता है। उसंे यह बोध करायें कि यदि शत्रु होते है तोमित्र भी होते है।कमाया गया एक डालर पाये गये पाॅंच डालरों कीतुलना में कही ंअधिक महत्वपूर्ण है।........उसे आप खेल भावना सेहारना सिखायें और विजयी होने का आनन्द लेना भी सिखये। उस ईष्र्या से दूर ले जायें।यदि हो सके तो उसे पुस्तको का चमत्कार
समझाये,विघालय मे उसे यह भी समझायें कि धोखा देने की तुलनामें असफल होना कही अधिक सम्मानजनक है......उसे अपने विचारोंपर विश्वास रखने की सीख दे चाहे प्रत्येक व्यक्ति उसके विचारों को गलत ही क्यों न कहें। उसे भद्रजनों के साथ भद्र और उद्दण्डव्यक्तियों के साथ कठोर बनना
सिखाये।’’ यदि हो सके तो उसे यहभी सिखाये कि विवाद के क्षणों में मुस्कराया कैसे जाता है।..............दसे यह समझायें कि आॅखों में आना लज्जा की बात नही है। उसे विश्वासहीन व्यक्यिों की उपेक्षा करना सिखाये और अत्यधिक मधुरता से सावधान रहना भी सिखाये ...............उसे यह शिक्षा दे कि वह
अपना मस्तिष्क तो सबसे ऊॅंचे दाम देने वाले के हवाले करें किन्तु अपनी आत्मा और विश्वासों के दाम न लगाये।उसे चीखने-चिल्लाने वाली उग्र भीड़ की तरफ कान बन्द करना सिखाये .........और यदि वह अपने पक्ष को सही मानता है तो उस पर दृढ़ रहकर संघर्ष करने की भी उसे शिक्षा दे ।
’’यह बहुत ही अपेक्षा है परन्तु सोचे कि आप क्या कर सकते है।’’अगर हाॅ तो उठो ,देखो उस सूरज को,जो कोशिश,प्रयत्न करने के बाद वह पृथ्वी पर से कई घण्टो बाद कोहरें को दूर करता है क्योकि वह जानता है कि:-
’’कोशिश,प्रयत्न करना हमारा काम है, न की स्वंय-से- स्वयं को फल देना ’’
तो सोचो यह वक्त सोने का है हाथ-पे-हाथ रखकर बैठने का है ,जैसे-तैसे पेट भरने का है बहानेवाजी करने का है ! नही बिल्कुल भी नही यह वक्त है इतिहास से सीख लेने का, कुछ अलग करने का क्योकि महान लोग कोई महान काम नही करते है वह सफलता के लिए सपने देखते है और उनको साकार करने के लिए कोशिश प्रयत्न करते है इस पर अज्ञात जी ने कहा है कि:-
’’वे अपनी असफलता में सफलता ढ़ूढ़ लेते है जिसके कारण वे बड़ेसे बड़े आविष्कार,कार्य करते है तथा कल्पना और सपने को साकार करतें है । ’’
और फिर वह काॅन्फीडेंस से साथ आशावादी होकर प्रसन्न रहकर गहराई के साथ कार्य तथा कार्य योजना बनाकर प्रयास प्रयत्न कोशिश करते है कि:- ’’
’’बार-बार किसी कार्य क्षेत्र में प्रयत्न,कोशिश करना
ही तथा उददेश्य कों प्राप्त करना सफलता है । ’’
writer by Gyan Prakash