मेरे महबूब के घराने में मखमली सा जश्न हो गया।।
साख से पत्ता टूट गया ,साथ तेरा छूट गया ,
सासें है कुछ बाकी , मेरा जीवन मुरझा गया ।।
शवनमी ओस की बूंदों में, तेरा मेरा मुस्कुराना ,
महफिल में गीत,गज़ल तरन्नुम तराना बन गया ।।
दिल के कोरे पन्नो पर, आहटों,मयकसी अदाओं का,
नूरे मुज्जसिम शाफे महबूबे तीरें कलम चल गया ।।
करवट बदलते ही जन्नतें सागर समुद्र बन गया,
दुनिया नफरते नजरे फासलो का फासाना बन गया।।
मिलना जुलना अब कहा रहा ,कैद है अपने घर में ,
जन्मों का वादा करके ,ढाई अक्षर अधूरा रहे गया ।
आखें बंद हो गई उम्रभर ,लाश पर कफ़न चढ़ गया,
मेरे महबूब के घराने में मखमली सा जश्न हो गया।।
रूकशते जनाजा जब उनकी गली से निकला मेरा ,
ग़मगीन दुनिया, खिडकी से देख आसु छलक गया ।
महफिल में गीत,गज़ल तरन्नुम तराना बन गया ।।
महफिल में गीत,गज़ल तरन्नुम तराना बन गया ।।
लेखक ज्ञान प्रकाश दि0 2.1.2015
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