Saturday, 30 May 2015

मेरी लिखी कुछ शायरी : ज्ञान प्रकाश


 मेरी लिखी कुछ शायरी

मेरी सांसों में हो तुम,मेरे हमराज हो तुम,
छुपाया न कोई राज , वो राज हो तुम ।
पल-पल हर घडी याद करते है, वो चाहत हो तुम,
जिसको माँगा रब से , वो माँग हो तुम ।।


मेरे जनाजे पर कोई रोने वाला न होगा,
लाश पर मेरी कफन दुप्टटा तुम्हारा होगा।
जल जाये चिता मेरी फिर भी तुम्हारी,
सोते ,जागते आँखों में ख्वाब मेरा होगा ।।


हमने जिसे अपना कहाँ , वो किसी और के हो लिऐ,
शीशे का दिल समझकर मेरा, तोड़ के टुकडे.टुकडे कर दिये।
जि़दंगी समझकर सासों में ,बसाया था हमने,
उम्रभर साथ रहने का वादा,बीच मज़धार मेँ छोड़कर चल दिये।।

 
अकेला तेरी यादों के साये में बैठा था,
सोचा अतीत से कुछ गुफ्तगु कँरु ।
बोला जन्नत भी जहन्न भी यहाँँ,
पर तेरे असूलों को सलाम कँरु।।


किसी को तो मौहब्बत है
वरना इस बेगानी जिद.गी को कौन चाहाता है
भटकते हुऐ राह में मिल जाते है पत्थर ,
हटाना कौन चाहता है ।
गिर जाते है कई राहगीर ,ठोकरें खाके
पर गले लगाना कौन चाहता है
हर कोई मदर टेरीसा नहीं है ,
जो गले लगा ले ,
एक तू है जो मुझे पाना चाहता है
एक तू है जो मुझे पाना चाहता है
      
 ज्ञान प्रकाश      

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