वंश वेल की चाहात में ,
नन्नी जान को क्यो मार रहे हो ।
बिन कन्या दान किये जीवन है अधूरा,
जन्म दो मुझकांे धरा पर आने दों।
मैं न आयी तो कौन सजायेंगा रंगोली,
जन्म दो मुझकों भाई तिलक करने दों।।
दुवधा में है मेरी मां,,पल रही हुँ कोख मे।
कहे सब गिरा दंे,,अकेली रोती कमरें में।।
कैसे मनाये बैठी ये सोच रही हैं मेरी मां ,
घर का दीपक हुँ ,लक्ष्मी हुँ अँागन में ।।
घर को घर बनाती है बेटियाँ ,
बेटियाँ न हो तो ,वंश कहाँ से लायेगा ।
क्योकि
नर से नारी उपजे ,नारी नर की खान ।
दुर्गा,लक्ष्मी,सरस्वती ,एक से एक महान ।
ज्ञान प्रकाश
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