गज़ल
अश्क आँखोँ से बहते है,
सुबह.शाम याद मेँ रहते है,
न कोई फोन न कोई संदेशा,
बस एक मुलाकात को तरसते है,.........
जाने कौन सा वो दिन था,
जाने कौन सा वो पल था,
जाने किसकी नज़र लग गई,
प्यार को हमारे,
देखा बाप ने उनके जब,
साथ हम रहते हैँ,
तब से वो अपने घर में कैद रहते हैँ
बस एक मुलाकात को तरसते है..........
उनको फिक्र नहीं है मेरी,
चाहे लाश हो कफ़न से ढ़की मेरी,
गिरेगें न उनके आँसु लाश पे मेरी,
बिछडने के बाद वो दिल.ऐ.गमज़ान रखते हैँ
बस एक मुलाकात को तरसते हैं ............
जाने कौन सा वो पल था,
जाने किसकी नज़र लग गई,
प्यार को हमारे,
देखा बाप ने उनके जब,
साथ हम रहते हैँ,
तब से वो अपने घर में कैद रहते हैँ
बस एक मुलाकात को तरसते है..........
उनको फिक्र नहीं है मेरी,
चाहे लाश हो कफ़न से ढ़की मेरी,
गिरेगें न उनके आँसु लाश पे मेरी,
बिछडने के बाद वो दिल.ऐ.गमज़ान रखते हैँ
बस एक मुलाकात को तरसते हैं ............
लेखक .ज्ञान प्रकाश
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