बेटी पराई हो जाती है।।
बचपन हँस खेल बीता,
अपने आँगन मेँ।
पराये घर जाने का दिन,
आया यौवन में।।
यादेँ संजोकर रखकर,
मां.बाप,घर.बार छोड़ गई।
रो.रो कर विदा हो गई,
बेटी आज पराई हो गई।।
देखा नया परिवार,
लेकर उमंग मन में खुशी की।
बीते दो ही चार दिन,
टुट गई दीवार ख्वाहिशों की।।
क्या लाई तू मायके से,
मिले संास ससुर के ताने ।
देख पडोस की बहुँ को ,
लाई अपने साथ चाँदी सोने।।
देने को कुछ ना जुडा,
बाप पर तेरे ।
सीधा समझकर संबंध बनाया,
लडके से मेरे ।।
सुनकर ताने कोसती है,
सिसकती है रोती है ।
देखकर यह व्यवहार,
मन नही मन कुन्टित रहती है।।
क्या करूँ, कैसे करूँ,
कुछ नहीं समझ पाती है।
अन्त में अपना जीवन ,
मौत को दे जाती है।।
बेटी पराई हो जाती है।।
अपने आँगन मेँ।
पराये घर जाने का दिन,
आया यौवन में।।
यादेँ संजोकर रखकर,
मां.बाप,घर.बार छोड़ गई।
रो.रो कर विदा हो गई,
बेटी आज पराई हो गई।।
देखा नया परिवार,
लेकर उमंग मन में खुशी की।
बीते दो ही चार दिन,
टुट गई दीवार ख्वाहिशों की।।
क्या लाई तू मायके से,
मिले संास ससुर के ताने ।
देख पडोस की बहुँ को ,
लाई अपने साथ चाँदी सोने।।
देने को कुछ ना जुडा,
बाप पर तेरे ।
सीधा समझकर संबंध बनाया,
लडके से मेरे ।।
सुनकर ताने कोसती है,
सिसकती है रोती है ।
देखकर यह व्यवहार,
मन नही मन कुन्टित रहती है।।
क्या करूँ, कैसे करूँ,
कुछ नहीं समझ पाती है।
अन्त में अपना जीवन ,
मौत को दे जाती है।।
बेटी पराई हो जाती है।।
लेखक . ज्ञान प्रकाश
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