कविता. कई घर चला रही है आज बेटियाँ
देवतुल्य है भारत में बेटियाँ,
फिर क्यों नहीं बेटी सम्मान ।
समाचारों के माध्यम से मिलता हैं,
सुनने को बेटियों का अपमान ।।
क्या बेटियाँ पराई हो गई,
क्यों बेचते हो उनको बाजार में ।
क्या उनको जीने का हक नहीं,
क्यों जन्म से पहले मौत भूण में ।।
क्यों बेटियों की बलि दे रहे हो,
क्यों पाप के भागीदार बन रहे हो ।
मैनें तो नरक शब्द सुना था,
धरती को क्यों नरक बना रहे हो ।।
बेटे बेटी में फर्क क्यों मना रहे हो,
कंधे से कंधा मिलाकर चलती है आज बेटियाँ ।
दुनिया में देखे , चिराग समझ्ाो बेटी को,
कई घर चला रही है आज बेटियाँ ।।
कई घर चला रही है आज बेटियाँ ।।
लेखक .ज्ञान प्रकाश
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