क्यों आज आदमी को मार रहे हो तुम।।
गंगा में नहा कर पाप धो आयें तुम।
क्यों कर रहे हो मैला पवित्र गंगा को,
मिल कर दूर कर लो गिले-शिकवे,
क्यों आज आदमी को मार रहे हो तुम।
क्यों आज आदमी को मार रहे हो तुम।।
नफरतों के बीज मत वोओ दिल में तुम,
हाथ में चाकू - बन्दूक मत उठो तुम,
मजहबी दंगगों को न भडकाओ तुम,
प्यार जहाँ पनपता उस देश के हो तुम ,
क्यों आज आदमी को मार रहे हो तुम।
क्यों आज आदमी को मार रहे हो तुम।।
लेखक . ज्ञान प्रकाश
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