Saturday, 30 May 2015

मेरे रब मुझे, मेरे चाँद से मिला दो।।

  मेरे रब मुझे, मेरे चाँद से मिला दो।।

रात की तन्हाईयों में याद आती हो तुम ,
पल -पल करवटे बदलता हुँ अकेला ,
तुम्हारी यादें बहुत सताती है ,
कैसे हो ,कहाँ हो ,कुछ पता नहीं ,
कभी तो याद करो मुझे ,
रमज़ान का पाक महीना चल रहा है ,
मेरे रमज़ान पूरे हो रहे है ,
एक इफ्तयार तो करा दो ,
अपना दीदार तो करा दो,
लो ईद का वो मुबारक दिन आ गया ,
चाँद भी नज़र आ गया ,
मेरी ईद ,मेरा चाँद कहाँ है ,
इसी का इंतजार है ।
इसी का इंतजार है ।
सोचा  था इस रमज़ान में ,
मेरी भी ईद हो जायेगी ,
पर मेरा चाँद न दिखा ,
न हुआ उसका  दीदार ,
भूल थी वर्षो गुजर गये,
रमजान पे रमजान निकल गये ,
पर मेरे रमजान का इफ्तयार  ,
आज भी अधूरा है ,
आज भी अधूरा है ,
अपने दीदार तो करा दो ,
कल 30वाँ रोज है ,
इफ्तयार  तो करा दो ,
इफ्तयार  तो करा दो ,
इसी का इंतजार है ।
मेरे रब मुझे, मेरे चाँद से मिला दो ।
मेरे रब मुझे, मेरे चाँद से मिला दो।।

लेखक - ज्ञान प्रकाश  दिनाकं  7.4. .2015

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