Saturday, 30 May 2015

लिखने को तो बहुत कुछ है , पर क्या लिखँू विजय गाथा ।





लिखने को तो बहुत कुछ है ,
पर क्या लिखँू विजय गाथा ।


अपने प्राणों की आहुति देकर ,
भारत मां की लाज बचाई है ।
पवन श्आजादी पर्व श् के ,
वीर सपुतों की याद आयी है ।।

खजाना लूट कर काकोरी कण्ड ,
असफाक , रोशन , बिस्मिल ने ,
अग्रेजी हुकूमत की नीदं उडाई थी ।
नाकों चने चबवायें स्वधीन स्वराज्य लाने को,
चन्द्र शेखर आजाद ने खूद ही गोली खायी थी।। 

मां के लालों की अलख निराली थी,
केसर सा पसीना ,लहू की होली दिवाली थी ।
साइमन कमीशन लाने को लाला राजपत राय ने
अन्दोलन कर अंग्रेजो की लाटियाॅ खाई थी।।

देख अग्रेजों का अत्याचार, वीरो ने किया नर संगहार,
सुखदेव ,भगत सिंह ,राजगुरू ने असेंबली उढाई थी।
तुम मुझे खून दो ,मै तुम्हे आजादी जैसे नारें से ,
एक जुट होकर सुभाष ने एक नई सेना बनाई थी।।

शेष 19 दिसंबर को कुछ मुस्तक आप तक
लेखक ज्ञान प्रकाश

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