Saturday, 30 May 2015

मेरी कलम से

मेरी कलम से  

(1)

इतिहास में स्वर्ण अक्षरों से लिखी कहानी,

जलालाबाद परशुराम की जन्म निशानी ।

मुगल राज्य का शासन रहा यहाँ ,

बहादुरगंज मकबरा शाहजहाँ की निशानी।।

अमर बलिदानियों की जन्म भूमि ,

अंकित रक्त वीरता की कहानी ।

ऋषि मुनियों की तप भूमि ,

पावन ढ़ाई घाट की जुबानी ।।

जनपद शाहजहाँपुर शोध का विषय रहा है ।

जनपद शाहजहाँपुर शोध का विषय रहा है ।

 

(2)

मानवी मुखौटे है ,रंग अलग.अलग चढे़ है।

रोटी के चक्कर में स्वार्थी चार मंत्र पढें है ।।

प्रेम, चतुराई ,चापलूसी ,झूठी शान के झण्डे गढे़ है ।

राजा हो या रंक सब लक्ष्मी देवी के पीछे पड़े है ।।

राजा हो या रंक सब लक्ष्मी देवी के पीछे पड़े है ।।


(3)

मेरी रूह भटकती है रूहादें मिलाद के लिए ,

इतनी वेवफा नहीं कि गिरते अश्को मे चेहरा न हो ।

अपराध था मेरा मोहब्बत मे खुद को फना कर देना ,

रूखस्ते दुनिया हुआ मै फिर भी पत्थर दिले वफा न हो।।

अंधेरी गलियों मे भटकता हुँ मै ,एक साया बनकर ,

न जन्नत ,न जहन्नम ,मेरा जीवन जैसे फकीरी बना हो ।

न जन्नत ,न जहन्नम ,मेरा जीवन जैसे फकीरी बना हो ।

(4)


तुम सुन्दर हो ,भोली हो ,चंचल हो

बस फर्क इतना है कि तुम नाराज हो।।

मागें तो पुरी हो जाती है सबकी

गाँधी गिरी से सरकारे झुक जाती है

मना लेता अगर लोकतंत्र कुछ ऐसा होता

तो मोहब्बत का एक अनशन होता     

तो मोहब्बत का एक अनशन होता 

(5)


काेई तो बताता मेरा गुनाहा क्या है

मंच पर नाटक का डायलॉग क्या है ।

मेरा तुम्हारा रिस्ता सात जन्मों का है

भूकम्प आया जिदंगी मे दिल बिराना है ।।

बंजर हो गया सब कुछ जमाना हॅस रहा है

तन्हाही में भी तेरी यादों से रिस्ता रहा है ।

तन्हाही में भी तेरी यादों से रिस्ता रहा है ।


(6)

सडको पर चलना है मुश्किल ,

भूखे भेडिये मानव रुपी दानव ।

जगह जगह पर है खडे हुऐ ,

छेडछाड,बलात्कार की घटनाऐं

हो रही सरेआम ।

कोई अंकुश नही ,

क्यो है मौन ।।


नारी

क्या यही तेरी कहानी ,

आॅचल में दुध,आॅखों में पानी ,

सिशकती, रोती,

घर बाहर डरी सहमी रहती है ।

कौन सुने फरियाद,

दर्द ,घटनाओं से कहे,

अगले जन्म बिटियाॅ न कीजों मोहे।।

अगले जन्म बिटियाॅ न कीजों मोहे।।

 

(7)

भूखमरी ,छिनाझपटी के दौर में ,

कामयाबी की होड में ,

न दिन को ,न रात को चैन ,

पढ़ लिखकर डिग्रियाँ हाथों में ,

जेब खाली नौकरी की होड में ।

क्या करे ,कहाँ जाये ,

कौन सुने फरियाद ।

(8)


अच्छा समझ सत्ता में लाऐं ,

अच्छे दिन हमारे भी आऐं ,

सोचा योजनाओं का लाभ उठाऐं ,

सब ढ़ाई के तीन पाथ ,

ज्यो का त्यों ,

पहन खादी का पोशाक ,

वादों का इन्द्रधनुषी रंग दिखाऐं ,

सब अपनी थाली ,अपना पेट ,

अपना आशियाना भरते नजर आयें ।।

(9)


स्वतंत्र लोकतंत्र के तीन स्तम्भ ,

आइने सच के कलमकार का ,

लोकतंत्र में चैथा स्तम्भ नहीं ,

जान हथेली पर रखकर खबर देता ,

अच्छो अच्छो की पोल खोलता ,

भष्ट्र सत्ताधारियो को खटकता,

मार दिया या शहीदों में नाम हुआ,

भष्ट्र कहुँ लोकतंत्र या सरकार को ,

सब एक ही थाली के चटटे बटटे है ,

 

लेखक - ज्ञान प्रकाश  दिनाकं  8.4. .2015 to 30-5-2015

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