Saturday, 30 May 2015
मेरे रब मुझे, मेरे चाँद से मिला दो।।
मेरे रब मुझे, मेरे चाँद से मिला दो।।
रात की तन्हाईयों में याद आती हो तुम ,
पल -पल करवटे बदलता हुँ अकेला ,
तुम्हारी यादें बहुत सताती है ,
कैसे हो ,कहाँ हो ,कुछ पता नहीं ,
कभी तो याद करो मुझे ,
रमज़ान का पाक महीना चल रहा है ,
मेरे रमज़ान पूरे हो रहे है ,
एक इफ्तयार तो करा दो ,
अपना दीदार तो करा दो,
लो ईद का वो मुबारक दिन आ गया ,
चाँद भी नज़र आ गया ,
मेरी ईद ,मेरा चाँद कहाँ है ,
इसी का इंतजार है ।
इसी का इंतजार है ।
सोचा था इस रमज़ान में ,
मेरी भी ईद हो जायेगी ,
पर मेरा चाँद न दिखा ,
न हुआ उसका दीदार ,
भूल थी वर्षो गुजर गये,
रमजान पे रमजान निकल गये ,
पर मेरे रमजान का इफ्तयार ,
आज भी अधूरा है ,
आज भी अधूरा है ,
अपने दीदार तो करा दो ,
कल 30वाँ रोज है ,
इफ्तयार तो करा दो ,
इफ्तयार तो करा दो ,
इसी का इंतजार है ।
मेरे रब मुझे, मेरे चाँद से मिला दो ।
मेरे रब मुझे, मेरे चाँद से मिला दो।।
लेखक - ज्ञान प्रकाश दिनाकं 7.4. .2015
मेरी कब्र आज का आठवां अजूवा होता ।।
मेरी कब्र आज का आठवां अजूवा होता ।।
प्यार भी अगर कोई दुकान पर बिकता होता,
दुनिया में इश्क का कोई बीमार न होता ।
"प्रकाश "काम के तो थे, इश्क ने मार दिया,
मेरे बहते अश्को को पानी न समझा होता ।।
तो मोहब्बत का ढाई अक्षर अधूरा न होता,
ख्वाहिस है मेरी क़ब्र पर नाम तेरा होता ।
ताजमहल है सातवां अजूवा मोहब्बत का ,
तो मेरी कब्र आज का आठवां अजूवा होता ।।
लेखक ज्ञान प्रकाश दिनाकं 1.4.2015
मेरे महबूब के घराने में मखमली सा जश्न हो गया।।
मेरे महबूब के घराने में मखमली सा जश्न हो गया।।
साख से पत्ता टूट गया ,साथ तेरा छूट गया ,
सासें है कुछ बाकी , मेरा जीवन मुरझा गया ।।
शवनमी ओस की बूंदों में, तेरा मेरा मुस्कुराना ,
महफिल में गीत,गज़ल तरन्नुम तराना बन गया ।।
दिल के कोरे पन्नो पर, आहटों,मयकसी अदाओं का,
नूरे मुज्जसिम शाफे महबूबे तीरें कलम चल गया ।।
करवट बदलते ही जन्नतें सागर समुद्र बन गया,
दुनिया नफरते नजरे फासलो का फासाना बन गया।।
मिलना जुलना अब कहा रहा ,कैद है अपने घर में ,
जन्मों का वादा करके ,ढाई अक्षर अधूरा रहे गया ।
आखें बंद हो गई उम्रभर ,लाश पर कफ़न चढ़ गया,
मेरे महबूब के घराने में मखमली सा जश्न हो गया।।
रूकशते जनाजा जब उनकी गली से निकला मेरा ,
ग़मगीन दुनिया, खिडकी से देख आसु छलक गया ।
महफिल में गीत,गज़ल तरन्नुम तराना बन गया ।।
महफिल में गीत,गज़ल तरन्नुम तराना बन गया ।।
लेखक ज्ञान प्रकाश दि0 2.1.2015
मेरी कब्र पर लिख दिया मेरे महबूब का नाम ।।
मेरी कब्र पर लिख दिया मेरे महबूब का नाम ।।
अपना बनाने की चाहात में सब खो दिया,
न ही खुदा मिला ,न ही विसाले सनम ।
तेरे हाथों की मेहंदी मेरे खून से रची है,
मेरी मौत पर भी ,न हुई तेरी आखें नम।।
कौन सी तराशे मिट्टी से बनी हुई हो तुम,
दिल है पत्थर तेरा, बताओ तो मेरे सनम।।
खता मेरी कौन सी जो इतना सितम किया,
बेनाम जिदंगी में, दिया दिवानगी का नाम।।
कम तो हम भी नही है, न जालिम दुनिया
मेरी कब्र पर लिख दिया मेरे महबूब का नाम ।।
लेखक ज्ञान प्रकाश दि028.12.2014
लिखने को तो बहुत कुछ है , पर क्या लिखँू विजय गाथा ।
लिखने को तो बहुत कुछ है ,
पर क्या लिखँू विजय गाथा ।
अपने प्राणों की आहुति देकर ,
भारत मां की लाज बचाई है ।
पवन श्आजादी पर्व श् के ,
वीर सपुतों की याद आयी है ।।
खजाना लूट कर काकोरी कण्ड ,
असफाक , रोशन , बिस्मिल ने ,
अग्रेजी हुकूमत की नीदं उडाई थी ।
नाकों चने चबवायें स्वधीन स्वराज्य लाने को,
चन्द्र शेखर आजाद ने खूद ही गोली खायी थी।।
मां के लालों की अलख निराली थी,
केसर सा पसीना ,लहू की होली दिवाली थी ।
साइमन कमीशन लाने को लाला राजपत राय ने
अन्दोलन कर अंग्रेजो की लाटियाॅ खाई थी।।
देख अग्रेजों का अत्याचार, वीरो ने किया नर संगहार,
सुखदेव ,भगत सिंह ,राजगुरू ने असेंबली उढाई थी।
तुम मुझे खून दो ,मै तुम्हे आजादी जैसे नारें से ,
एक जुट होकर सुभाष ने एक नई सेना बनाई थी।।
शेष 19 दिसंबर को कुछ मुस्तक आप तक
लेखक ज्ञान प्रकाश
प्रकाश रात भर तेरे ख्वाब में उलझे रहे जब उठे तो सवेरा ।।
दोस्तो मेरे कलम से निकली मेरे दिल की आह......
प्रकाश रात भर तेरे ख्वाब में उलझे रहे जब उठे तो सवेरा ।।
इश्क प्यार जलते हुऐ उस दीपक की तरह होता है
जाे रोशनी तो देता है फिर बुझने के बाद अंधेरा ।
यौवन की खुशी के सारे बसंत ग़म गीन हो जाते है
बिछड़ने के बाद मुझे लाइलाज बीमारी ने घेरा ।।
मिला था साथ मेरे महबूब जो तेरा जन्नतें सागर में
गिरतें हुऐ मेरे अश्कों ने बना दिया मेरे महबूब का चहेरा ।
रू ब रू थी सामने मेरे अलफाज न निकले दिले शिकवा रहा
प्रकाश रात भर तेरे ख्वाब में उलझे रहे जब उठे तो सवेरा ।।
लेखक ज्ञान प्रकाश् आज और अभी लिखी है दि0 28-11-2014
बाल -भविष्य अस्त ,सदन में चर्चा क्यों नही
.................................बाल -भविष्य अस्त ,सदन में चर्चा क्यों नही ...................................
नाटक के पीछे नाटक हो रहा है , सत्ताधारी रोटियां शेक रहे है, सदन में भी को चर्चा नहीं, कुर्सी के लालच में देश भविष्य गडडे में जा रहा है ,सर्यअस्त होता जा रहा है तमाम बेरोजगार दर दर भटक रहे है परन्तु उनसे दैनीय हालात उन मासूमों की है जिनका बचपन उनसे रुठ गया हो , पठाई उनसे दूर भाग गयी हो , उनकी सारी इच्छाओं का दमन हो गया हो लगभग देश के 1 करोड बच्चे इनसे अछूते है वो तो कहीं कल -कारखानों में, कहीं होटलों में तो कहीं ऊंची चहारदीवारियों में बंद कोठियों की साफ -सफाई में लगे मिलते है, बाल श्रम पर बने हुये सारे कानून किताबो में सड रहे है जिन हाथे में इन बच्चो का भविष्य है वही उनके भविष्य के साथ खिलवाड कर रहे है और सारे कानून तोडते दिखाई देते है, इससे भी गभीर तत्व ये है कि देश के 1 करोड बच्चे बालमजदूरी का शिकार है शिक्षा सें और शारीरिक ,मानसिक विकास से वंचित हैं भारतीय संविधान में जो इनका हक है उससे महरूम हैं वह समाज के एक ऐसे ढांचे में पलने को मजबूर हैं जिनके छोटे कंधो पर शसक्त भारत निमार्ण हो सकता है परन्तु वो सही से जीवन को निर्माण दिशा देने में अक्षम है , सत्ताधारी , भष्ट आला -अफसरो के कारण बालमन्त्रालय से मिलने वाली योजनाओ को कागजी कार्यवाही में ही रखकर खा लिया जाता है जिनका भविष्य या ता अपराधिक मोड ले लेता है या फिर फुटपात जीवन पर टिका है जिनकी बेनाम जिदंगी का कोई मोल नजर नहीं आता। आखिर क्यों !! क्यो करते है मजदूरी, कहा सोते है सत्ताधारी जनप्रतिनिधि ,क्यो नहीं चर्चा सदन में आखिर क्यों !!!
लेखक .ज्ञान प्रकाश
वंश वेल की चाहात में ,
नन्नी जान को क्यो मार रहे हो ।
बिन कन्या दान किये जीवन है अधूरा,
जन्म दो मुझकांे धरा पर आने दों।
मैं न आयी तो कौन सजायेंगा रंगोली,
जन्म दो मुझकों भाई तिलक करने दों।।
दुवधा में है मेरी मां,,पल रही हुँ कोख मे।
कहे सब गिरा दंे,,अकेली रोती कमरें में।।
कैसे मनाये बैठी ये सोच रही हैं मेरी मां ,
घर का दीपक हुँ ,लक्ष्मी हुँ अँागन में ।।
घर को घर बनाती है बेटियाँ ,
बेटियाँ न हो तो ,वंश कहाँ से लायेगा ।
क्योकि
नर से नारी उपजे ,नारी नर की खान ।
दुर्गा,लक्ष्मी,सरस्वती ,एक से एक महान ।
ज्ञान प्रकाश
पर भुला नहीं मैं आज
पर भुला नहीं मैं आज
गम ही गम हैं,
जाने के बाद तेरे,
आसु ही आसु हैं,
आज आखों में मेरे।
सोचा था लौटकर आओगें
फिर मुझें अपना बनाओगें,
पर ये मेरी भुल थी,
तुम किसी और के थे,
प्यार नहीं मेरे लिए दिल में,
बीज ऐ नफरत वोये थे,
देवी समझा मैंने तुमको,
लेकिन फरेबी निकलें,
अलफाजों की कमीं है मेरे पास,
फिर भी मेरे दिल के हो पास,
भुल गये हो तुम,
पर भुला नहीं मैं आज
लेखक . ज्ञान प्रकाश
मेरी लिखी कुछ शायरी : ज्ञान प्रकाश
मेरी लिखी कुछ शायरी
मेरी सांसों में हो तुम,मेरे हमराज हो तुम,
छुपाया न कोई राज , वो राज हो तुम ।
पल-पल हर घडी याद करते है, वो चाहत हो तुम,
जिसको माँगा रब से , वो माँग हो तुम ।।
मेरे जनाजे पर कोई रोने वाला न होगा,
लाश पर मेरी कफन दुप्टटा तुम्हारा होगा।
जल जाये चिता मेरी फिर भी तुम्हारी,
सोते ,जागते आँखों में ख्वाब मेरा होगा ।।
हमने जिसे अपना कहाँ , वो किसी और के हो लिऐ,
शीशे का दिल समझकर मेरा, तोड़ के टुकडे.टुकडे कर दिये।
जि़दंगी समझकर सासों में ,बसाया था हमने,
उम्रभर साथ रहने का वादा,बीच मज़धार मेँ छोड़कर चल दिये।।
अकेला तेरी यादों के साये में बैठा था,
सोचा अतीत से कुछ गुफ्तगु कँरु ।
बोला जन्नत भी जहन्न भी यहाँँ,
पर तेरे असूलों को सलाम कँरु।।
किसी को तो मौहब्बत है
वरना इस बेगानी जिद.गी को कौन चाहाता है
भटकते हुऐ राह में मिल जाते है पत्थर ,
हटाना कौन चाहता है ।
गिर जाते है कई राहगीर ,ठोकरें खाके
पर गले लगाना कौन चाहता है
हर कोई मदर टेरीसा नहीं है ,
जो गले लगा ले ,
एक तू है जो मुझे पाना चाहता है
एक तू है जो मुझे पाना चाहता है
सोचा अतीत से कुछ गुफ्तगु कँरु ।
बोला जन्नत भी जहन्न भी यहाँँ,
पर तेरे असूलों को सलाम कँरु।।
किसी को तो मौहब्बत है
वरना इस बेगानी जिद.गी को कौन चाहाता है
भटकते हुऐ राह में मिल जाते है पत्थर ,
हटाना कौन चाहता है ।
गिर जाते है कई राहगीर ,ठोकरें खाके
पर गले लगाना कौन चाहता है
हर कोई मदर टेरीसा नहीं है ,
जो गले लगा ले ,
एक तू है जो मुझे पाना चाहता है
एक तू है जो मुझे पाना चाहता है
ज्ञान प्रकाश
गज़़ल
गज़़ल
बेखबर तूफाँ भी तुझे देखा करते है,
सारा जहाँ तेरे कदमों में रखते है ।
लिखता कहानी मोहब्बत की कलम से,
जहाँँ दिले मोहब्बत के चिराग जलते है ।।
मेरी निगाहों से निगाह मिला न सके,
मोहब्बत को वो अक्सर छुपाते है ।
क्योकि मोहब्बत का रिस्ता मुझसे नहीं,
वे किसी और से निभाते है ।।
“प्रकाश” तुम उन्हीं राहों पे ग़मजान रहना,
जहाँ दिलो में बेवफाई के चिराग जलते है।।
लेखक . ज्ञान प्रकाश
सारा जहाँ तेरे कदमों में रखते है ।
लिखता कहानी मोहब्बत की कलम से,
जहाँँ दिले मोहब्बत के चिराग जलते है ।।
मेरी निगाहों से निगाह मिला न सके,
मोहब्बत को वो अक्सर छुपाते है ।
क्योकि मोहब्बत का रिस्ता मुझसे नहीं,
वे किसी और से निभाते है ।।
“प्रकाश” तुम उन्हीं राहों पे ग़मजान रहना,
जहाँ दिलो में बेवफाई के चिराग जलते है।।
लेखक . ज्ञान प्रकाश
बेटी पराई हो जाती है।।
बेटी पराई हो जाती है।।
बचपन हँस खेल बीता,
अपने आँगन मेँ।
पराये घर जाने का दिन,
आया यौवन में।।
यादेँ संजोकर रखकर,
मां.बाप,घर.बार छोड़ गई।
रो.रो कर विदा हो गई,
बेटी आज पराई हो गई।।
देखा नया परिवार,
लेकर उमंग मन में खुशी की।
बीते दो ही चार दिन,
टुट गई दीवार ख्वाहिशों की।।
क्या लाई तू मायके से,
मिले संास ससुर के ताने ।
देख पडोस की बहुँ को ,
लाई अपने साथ चाँदी सोने।।
देने को कुछ ना जुडा,
बाप पर तेरे ।
सीधा समझकर संबंध बनाया,
लडके से मेरे ।।
सुनकर ताने कोसती है,
सिसकती है रोती है ।
देखकर यह व्यवहार,
मन नही मन कुन्टित रहती है।।
क्या करूँ, कैसे करूँ,
कुछ नहीं समझ पाती है।
अन्त में अपना जीवन ,
मौत को दे जाती है।।
बेटी पराई हो जाती है।।
अपने आँगन मेँ।
पराये घर जाने का दिन,
आया यौवन में।।
यादेँ संजोकर रखकर,
मां.बाप,घर.बार छोड़ गई।
रो.रो कर विदा हो गई,
बेटी आज पराई हो गई।।
देखा नया परिवार,
लेकर उमंग मन में खुशी की।
बीते दो ही चार दिन,
टुट गई दीवार ख्वाहिशों की।।
क्या लाई तू मायके से,
मिले संास ससुर के ताने ।
देख पडोस की बहुँ को ,
लाई अपने साथ चाँदी सोने।।
देने को कुछ ना जुडा,
बाप पर तेरे ।
सीधा समझकर संबंध बनाया,
लडके से मेरे ।।
सुनकर ताने कोसती है,
सिसकती है रोती है ।
देखकर यह व्यवहार,
मन नही मन कुन्टित रहती है।।
क्या करूँ, कैसे करूँ,
कुछ नहीं समझ पाती है।
अन्त में अपना जीवन ,
मौत को दे जाती है।।
बेटी पराई हो जाती है।।
लेखक . ज्ञान प्रकाश
गज़़ल
गज़़ल
व़क्त रुक सा गया है, जु़बाँ थम सी गयी है,
जाने के बाद जि़दंगी ,अधूरी सी हो गयी है।।
किससे करुँ बयाँ दर्दे-गम, दिले-ए-हाल ,
दुनिया बड़़ी ज़ालिम और बेरहम भरी हैं ।।
जी मौत के आग़ोश में समाने का चाहता है,
रुँठ गये वो मुझसे ये उनकी बदनसीबी है।।
कम-से-कम बताते तो ब़ज्मेंयारा ख़ता मेरी ,
माँगते जान वो भी इश्कें फ़ना की कहानी है।।
कैसे भूल जाँऊ शबे वस्ल के वो मंज़र,
मैने खूने दिल से तेरी हथेलियाँ रचायी है।।
भरम समझकर इबादत की उम्रभर मैने,
त्ूा पत्थर का बुत बेवफाइ की कहानी है।।
लेखक - ज्ञान प्रकाश
जाने के बाद जि़दंगी ,अधूरी सी हो गयी है।।
किससे करुँ बयाँ दर्दे-गम, दिले-ए-हाल ,
दुनिया बड़़ी ज़ालिम और बेरहम भरी हैं ।।
जी मौत के आग़ोश में समाने का चाहता है,
रुँठ गये वो मुझसे ये उनकी बदनसीबी है।।
कम-से-कम बताते तो ब़ज्मेंयारा ख़ता मेरी ,
माँगते जान वो भी इश्कें फ़ना की कहानी है।।
कैसे भूल जाँऊ शबे वस्ल के वो मंज़र,
मैने खूने दिल से तेरी हथेलियाँ रचायी है।।
भरम समझकर इबादत की उम्रभर मैने,
त्ूा पत्थर का बुत बेवफाइ की कहानी है।।
लेखक - ज्ञान प्रकाश
तुम देश निर्माण के आधार हो।
तुम देश निर्माण के आधार हो।
सोने की चिडियाँ जैसा देश,
गुलामी की जंजीरो से बचा लिया,
पर घर के विरोधियों ने,
नरक से बत्तर बना दिया,
शर्मशार कर दिया,
जर्जर कर दिया,
सोचो कल का क्या होगा।
सोचो कल का क्या होगा।।
कब तक सोओगें ,
घरों में अपनें, कहाँ गया रगों का वो लहु,
कहाँ गया केसर सा पसीना,
हिल रही नीव का,
अब कौन आधार हो।
नये देश का निर्माण हो।।
नये देश का निर्माण हो।।
जोश की हुंकार से,
एकता की मिशाल से,
किरणों भरी उडान से,
उठो युवाओं तुम देश के ,
भावी कर्णधार हो,
तुम देश निर्माण के आधार हो।
तुम देश निर्माण के आधार हो।
लेखक . ज्ञान प्रकाश
गुलामी की जंजीरो से बचा लिया,
पर घर के विरोधियों ने,
नरक से बत्तर बना दिया,
शर्मशार कर दिया,
जर्जर कर दिया,
सोचो कल का क्या होगा।
सोचो कल का क्या होगा।।
कब तक सोओगें ,
घरों में अपनें, कहाँ गया रगों का वो लहु,
कहाँ गया केसर सा पसीना,
हिल रही नीव का,
अब कौन आधार हो।
नये देश का निर्माण हो।।
नये देश का निर्माण हो।।
जोश की हुंकार से,
एकता की मिशाल से,
किरणों भरी उडान से,
उठो युवाओं तुम देश के ,
भावी कर्णधार हो,
तुम देश निर्माण के आधार हो।
तुम देश निर्माण के आधार हो।
लेखक . ज्ञान प्रकाश
क्यों आज आदमी को मार रहे हो तुम।।
क्यों आज आदमी को मार रहे हो तुम।।
गंगा में नहा कर पाप धो आयें तुम।
क्यों कर रहे हो मैला पवित्र गंगा को,
मिल कर दूर कर लो गिले-शिकवे,
क्यों आज आदमी को मार रहे हो तुम।
क्यों आज आदमी को मार रहे हो तुम।।
नफरतों के बीज मत वोओ दिल में तुम,
हाथ में चाकू - बन्दूक मत उठो तुम,
मजहबी दंगगों को न भडकाओ तुम,
प्यार जहाँ पनपता उस देश के हो तुम ,
क्यों आज आदमी को मार रहे हो तुम।
क्यों आज आदमी को मार रहे हो तुम।।
लेखक . ज्ञान प्रकाश
गज़ल
गज़ल
अश्क आँखोँ से बहते है,
सुबह.शाम याद मेँ रहते है,
न कोई फोन न कोई संदेशा,
बस एक मुलाकात को तरसते है,.........
जाने कौन सा वो दिन था,
जाने कौन सा वो पल था,
जाने किसकी नज़र लग गई,
प्यार को हमारे,
देखा बाप ने उनके जब,
साथ हम रहते हैँ,
तब से वो अपने घर में कैद रहते हैँ
बस एक मुलाकात को तरसते है..........
उनको फिक्र नहीं है मेरी,
चाहे लाश हो कफ़न से ढ़की मेरी,
गिरेगें न उनके आँसु लाश पे मेरी,
बिछडने के बाद वो दिल.ऐ.गमज़ान रखते हैँ
बस एक मुलाकात को तरसते हैं ............
जाने कौन सा वो पल था,
जाने किसकी नज़र लग गई,
प्यार को हमारे,
देखा बाप ने उनके जब,
साथ हम रहते हैँ,
तब से वो अपने घर में कैद रहते हैँ
बस एक मुलाकात को तरसते है..........
उनको फिक्र नहीं है मेरी,
चाहे लाश हो कफ़न से ढ़की मेरी,
गिरेगें न उनके आँसु लाश पे मेरी,
बिछडने के बाद वो दिल.ऐ.गमज़ान रखते हैँ
बस एक मुलाकात को तरसते हैं ............
लेखक .ज्ञान प्रकाश
कविता: मुर्खता का आभास
कविता: मुर्खता का आभास
सुर्य अस्त हुआ,
चाँद.तारों का आगमन हुआ,
तब
रात्रि आभास हुआ।
जा रहा था सोने,
मन में कुछ खटका,
कहीं
कुछ भूल रहा हूँ,
तब
इधर उधर देखा,
दरवाजा खुलने का आभास हुआ।
ये मेरा वहम था,
या कुछ और,
झट से खाट से उठा,
बढा दरवाजे की ओर,
देखा दरवाजा बन्द,
तब
हल्की ठंडी हवा का आभास हुआ।
मैं परेशान सोच रहा था,
हल्की ठंडी हवा का प्रवेश,
आखिर कहाँ से हुआ,
कुछ देर सोचते सोचते,
मन विचलित हुआ,
कहीं कोई आत्मा तो नहीं,
तुरन्त
बिजली चली गयी
तब
डर का आभास हुआ।
मैं
जैसे तैसे खाट के पास आया,
लेकिन
डर की तीव्रता बढ़ती जा रही,
मन में,
तरहें तरहें के विचार घूमने लगे,
क्या कँरु,
कैसे कँरु,
कुछ समझ नहीं आ रहा था,
तब
चादर तान कर लेट गया,
और
भगवान को याद करने लगा,
फिर
पता ही नहीं,
कब मेरी आँख लग गई,
लेकिन जब
हल्की रोशनी पडी,
नींद से जागा,
लेकिन फिर भी,
मन में था सन्देह,
कहीं कोई
आत्मा का खेल तो नहीं,
फिर भी
डरते डरते चादर को हटाया,
देखा
सुर्य की किरणो को,
रोशन दान से आते हुये,
तब मुझे,
अपनी मुर्खता का आभास हुआ।।
लेखक.ज्ञान प्रकाश
Friday, 29 May 2015
कविता. बेटी के जन्म पर, खुशिया मनाना हैं
मंा
मुझे भी जीने का हक हैं,
धरती की मोहो माया देखना हैं,
मुझे मत मारो,
क्योकि
मैं भी आप का अंश हूँ ।
जन्म दो मुझे,
कुछ कर दिखना हैं,
अपनी बेटी की जान,
आज तुम्हें बचाना हैं,
क्योकि
मैं भी कुछ अंश पिता का हूँ ।
यह संकट है तुम पर,
सोचो
कैसे पिता को मनाना हैं,
यहीं बात समझाना हैं।
कि
बेटी है अनमोल रत्न,
बेटे से नहीं कम,
बेटी को जन्म देना है,
कन्या भूण हत्या को मिटाना हैं।।
बेटी के जन्म पर, खुशिया मनाना हैं /
मंा
मुझे भी जीने का हक हैं,
धरती की मोहो माया देखना हैं,
मुझे मत मारो,
क्योकि
मैं भी आप का अंश हूँ ।
जन्म दो मुझे,
कुछ कर दिखना हैं,
अपनी बेटी की जान,
आज तुम्हें बचाना हैं,
क्योकि
मैं भी कुछ अंश पिता का हूँ ।
यह संकट है तुम पर,
सोचो
कैसे पिता को मनाना हैं,
यहीं बात समझाना हैं।
कि
बेटी है अनमोल रत्न,
बेटे से नहीं कम,
बेटी को जन्म देना है,
कन्या भूण हत्या को मिटाना हैं।।
बेटी के जन्म पर, खुशिया मनाना हैं /
बेटी के जन्म पर, खुशिया मनाना हैं //
लेखक .ज्ञान प्रकाश
कविता : कई घर चला रही है आज बेटियाँ
कविता. कई घर चला रही है आज बेटियाँ
देवतुल्य है भारत में बेटियाँ,
फिर क्यों नहीं बेटी सम्मान ।
समाचारों के माध्यम से मिलता हैं,
सुनने को बेटियों का अपमान ।।
क्या बेटियाँ पराई हो गई,
क्यों बेचते हो उनको बाजार में ।
क्या उनको जीने का हक नहीं,
क्यों जन्म से पहले मौत भूण में ।।
क्यों बेटियों की बलि दे रहे हो,
क्यों पाप के भागीदार बन रहे हो ।
मैनें तो नरक शब्द सुना था,
धरती को क्यों नरक बना रहे हो ।।
बेटे बेटी में फर्क क्यों मना रहे हो,
कंधे से कंधा मिलाकर चलती है आज बेटियाँ ।
दुनिया में देखे , चिराग समझ्ाो बेटी को,
कई घर चला रही है आज बेटियाँ ।।
कई घर चला रही है आज बेटियाँ ।।
लेखक .ज्ञान प्रकाश
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